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Tuesday, April 30, 2013

दशहरा: विजय का पर्व

राम और रावण वस्तुत: हमारे जीवन में चेतना के दो अलग-अलग छोरों और स्तरों का प्रतिनिधित्व करते हैं। दोनों ही छोर अपने-अपने चरम पर स्थित हैं। राम जहां चेतना की परम विशुद्ध अवस्था हैं, तो वहीं रावण उसकी अत्यंत प्रदूषित स्थिति। इस सच्चाई को श्रीरामचरितमानस के एक महत्वपूर्ण प्रसंग में देखा जा सकता है।



via जागरण संत-साधक

http://www.jagran.com/spiritual/sant-saadhak-dusshera-11692.html

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