न मथुरा से कोई नाता, न वृंदावन से लगाव। डॉ. वासुदेव शरण अग्रवाल की 'भारत-सावित्री' ने सोच बदली तो 'श्रीमद्भागवत' ने राह दिखाई। इसके बाद रच डाले एक दर्जन ग्रंथ। कोई 500 पेज का तो कोई एक हजार पन्ने का। कड़ी का अगला पड़ाव 'ज्योतिर्मय जनार्दन' है। श्रीकृष्ण को विभिन्न किताबों के जरिए समझने
via जागरण धर्म समाचार
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