होली की मस्ती हो और चतुर्वेदी समाज में भंग का रंग न चढ़े यह कैसे हो सकता है। इसके बिना तो होली का आनंद ही अधूरा रह जाएगा। इसके बगैर तो सत्कार भी नहीं हो सकेगा। जैसे-जैसे होली निकट आ रही है अखाड़े भी इसके रंग में सराबोर हो रहे हैं। सुबह-सायं चक्क ठंडाई घुट रही है। होली के रसिया हो रहे हैं। दुनिया के लिए भांग भ
via जागरण धर्म समाचार
http://ift.tt/1nrJg31
0 comments:
Post a Comment